विरोध का तरीका कब तक सही ??

बदलते समय के साथ साथ विरोध का तरीका भी बदलता जा रहा है, पर विरोध की हद कहा तक ??? विरोध का कुछ नियम, कुछ हद तक हो तभी तक बर्दास्त किया जा सकता है. बीते समय में सत्ताधारियों के खिलाफ कई पार्टियों ने भी विरोध प्रदर्शन किए थे, पुतले भी जलाए गए थे, इंदिराजी की सरकार में अटल बिहारी वाजपेई बैल गाड़ी लेकर संसद भवन गए थे, कोई नेता पेट्रोल के दाम के विरोध में सायकल लेकर संसद गया, भाजपाई नेताओने यूपीए की सरकार में कपड़ा फाड़कर महंगाई के विरोध में प्रदर्शन किए, स्मृति ईरानी और अन्य नेताओने साथ मिलकर बीच रास्ते सिलिंडर रखकर विरोध किए, वैसे ही एनडीए के शासन में बदलते समय के साथ विरोध करने का तरीका भी बदलता जा रहा है. हाल में ही आपने देखा होगा की अदानी मामले पर JPC जांच की मांग के साथ कोंग्रेस ने संसद में हंगामा किया, भाजपाई सांसद राहुल गांधी माफी मांगे की मांग पर अड़ी रही और एक दिन भी सदन में जनता के मुद्दो पर काम नही हुआ. हुआ तो सिर्फ हंगामा. जनता के टेक्स के करोड़ों रूपिये हुए बर्बाद. आखरी दिन में कोंग्रेस के साथ सभी विपक्षी पार्टीओने साथ मिलकर संसद की गलियारों में ही प्रदर्शन शुरू कर दिया ...