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जुलाई, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

त्योहारों की रौनक पर महंगाई का ग्रहण...!

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  महंगाई की मार, त्योहारो की भरमार...! आजकल जहा देखो जिसे देखो जनता सिर्फ और सिर्फ महंगाई के मारे परेशान हो रही है, पर आवाज उठाने से डर रही है, कही आवाज उठाई तो हुक्मरान जेल में ना भेज दे. पर आखिर ये मौन कब तक टिक पाएगा ??? श्रावण का महीना शुरू हो चुका है, और मोहर्रम भी शुरू हो चुका है. इसके साथ ही त्योहारों की भरमार शुरू होने वाली है. श्रावण में जन्माष्टमी का मेला, फिर मोहर्रम, फिर गणपति उत्सव, फिर नवरात्रि, शरद पूर्णिमा, दीपावली के साथ न्यू ईयर मतलब आने वाले तीन महीने लगातार त्योहारों में ही बीतने वाले है. श्रावण में मेले में जाए या घर का बजट संभाले ??? आम जनता के लिए परेशानी वाली बात ये है की त्योहार सिर पर है, महंगाई की मार है ऊपर से त्योहार भी मनाना है पर कैसे होगा ??? 2 साल कोरोना में मेले भी बंद थे तो इस साल मेले में भिड़ भी जुटेगी और इसका फायदा मेले वाले जरूर उठाएंगे और दाम दुगने कर देंगे, फिर आम आदमी अपने घर का बजट कितना संभालेगा ? और बच्चो की खुशियों पर कितनी ब्रेक लगाएगा ??? बच्चो की खुशियां भी तो जरूरी है क्योंकि जो कुछ कमा रहे है वो बच्चो के लिए ही तो है, फिर भी दिक्कत तो

संसद में चर्चा होनी चाहिए थी किस बात की, और हो रही है किस बात पर..!?

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  संसद में चर्चा होनी चाहिए थी किस बात पर और हो रही है किस बात पर....! संसद सत्र में आए दिन कुछ न कुछ बबाल की खबरे आती रहती है, उस वजह से विपक्षी कई सांसदों को सत्र के दौरान सस्पेंड भी किया गया, और वो सांसद संसद के बाहर धरना भी दे रहे है. संसद में चर्चा होनी चाहिए थी महंगाई, शिक्षा, रोजगार और गुजरात के लट्ठाकांड में मारे गए लोगो के दोषी कौन उस पर...! पर चर्चा हो रही है कोंग्रेस नेता अधिरंजन की जबान फिसली और राष्ट्रपति को राष्ट्रपत्नी बोल दिया, हालाकि गलती समझ में आने के बाद उसने माफी भी मांग ली फिर भी सत्ताधीशों ने उस बात को मुद्दा बना दिया और सांसद में स्मृति ईरानी ने तो यहां तक बोल दिया की आदिवासी महिला राष्ट्रपति से कोंग्रेस को दिक्कत है. अरे भाई सब कुछ ऑन रिकॉर्ड तो हो रहा है उसमे दिक्कत वाली बात कहा से आ गई ???? नारा था "बहुत हुई महंगाई की मार, अब की बार मोदी सरकार"... पर वादा ही भूल गए..! खेर अब आते है असली मुद्दे पर संसद में चर्चा होनी चाहिए थी महंगाई पर क्योंकि 25 किलो तक के पैकेट में मिलने वाली कुछ खाद्य वस्तुओं पर GST लगने के साथ ही बाजार में महंगाई की एक और लहर आ ग

देश की दुर्दशा? या सरकार की मजबूरी?

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देशी को शराब पीने के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया वहा सरकार के मंत्रियों के लिए उनकी खबर पूछने के लिए जाना उचित है? इनकी मौत देशी शराब पीने से हुई है. क्या अंतिम संस्कार के जुलूस में विपक्षी दल के नेता का शामिल होना जरूरी है जैसे कि वह बॉर्डर पर लड़े और मरे हों?   यहां तक ​​कि मीडिया   उसने माइक्रोफोन के साथ कैमरा लिया और उनके परिवार से संपर्क किया और सवाल पूछा कि यह घटना कैसे हुई। परिवार का जवाब था कि वह हर दिन शराब पीता था। आज शराब पीने के बाद उसकी तबीयत बिगड़ गई। फिर भी, उसे वहाँ जाना पड़ा आर्थिक रूप से अपना कलेजा खराब कर वहां जा रहा है।  सरपंच द्वारा प्रशासन को लिखे गए पत्र के शब्द "गाँव में शराबियों द्वारा बहुत अत्याचार किया जाता है। असामाजिक तत्व शराब पीते हैं और बहनों-बेटियों से छेड़छाड़ करते हैं और गाँव में अत्याचार सहते हैं।"   ये असामाजिक तत्व कौन थे?  इन तत्वों के बारे में जाकर पूछने या अंतिम यात्रा में शामिल होने की क्या जरूरत थी?  इस कांड से बचे लोगों को प्रेरणा मिलेगी। हम शराब पीकर बीमार पड़ गए। सरकारी मंत्री हमारी खबर पूछने आए थे। वह अस्पताल से ठीक हो गए

TRP के चक्कर में गोदी मीडिया के घिनौने एजंडा से दूर होते दर्शक

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गोदी मीडिया के अपने एजंडा चलाने को लेकर दिन प्रतिदिन दर्शकों ने ज्यादातर न्यूज चैनल को देखना बंद कर दिया है. वजह यही है की चैनल पर जातिवादी मानसिकता वाले डिबेट चलाना, अपने सेट किए गए प्रोपगेंडा चलाकर दर्शकों के दिमाग में जहर भरना. टीआरपी के चक्कर में गोदी मीडिया अपना मुख धर्म भूल गया है. मीडिया का काम होता है जनता की आवाज को सरकार तक पहुंचाना और जनता की मांगों को सरकार के समक्ष रखना. पर आजकल हो क्या रहा है ???  गोदी मीडिया नाम ही इसलिए पड़ा है की वो न तो जनता की आवाज को सरकार के समक्ष रख रहा है और ना ही विपक्ष के सवालों को जनता के सामने रख रहा है. सरकार की वाह वाही करने के लिए सरकारी चैनल तो है ही फिर भी सत्ता पक्ष को कुछ मीडिया संस्थानों को गोदी में बिठाकर अपना एजंडा सेट करके चलाने की जरूरत इसलिए पड़ रही है क्योंकि पिछले 8 साल में सरकार के मुखिया द्वारा किए गए वादों में से एक भी वादा ठीक तरह पूरा नहीं किया गया. फिर चाहे वो नोट बंदी हो, GST हो, कश्मीर से 370 कलम को हटाकर कश्मीरी पंडितो का पुनः स्थापन हो, महंगाई पर काबू पाना हो, बेरोजगारों को रोजगार देना हो, बेटियो की सुरक्षा हो वगेरह म

एक तनख्वाह से कितनी बार टेक्स दू और क्यो ???

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  एक तनख्वाह से कितनी बार टेक्स दूं और क्यों...जवाब है??? मैनें तीस दिन काम किया, तनख्वाह ली -  इनकम टैक्स दिया मोबाइल खरीदा - टैक्स दिया--' रिचार्ज किया - टैक्स दिया डेटा लिया - टैक्स दिया बिजली ली - टैक्स दिया घर लिया - टैक्स दिया TV फ्रीज़ आदि लिये - टैक्स दिया कार ली - टैक्स दिया पेट्रोल लिया - टैक्स दिया सर्विस करवाई - टैक्स दिया रोड पर चला - टैक्स दिया टोल पर फिर - टैक्स दिया लाइसेंस बनवाया - टैक्स दिया गलती की तो - टैक्स दिया रेस्तरां में खाया - टैक्स दिया पार्किंग का - टैक्स दिया पानी लिया - टैक्स दिया राशन खरीदा - टैक्स दिया कपड़े खरीदे - टैक्स दिया जूते खरीदे - टैक्स दिया किताबें लीं - टैक्स दिया टॉयलेट गया - टैक्स दिया दवाई ली तो - टैक्स दिया गैस ली - टैक्स दिया सैकड़ों और चीजें ली और - टैक्स दिया, कहीं फ़ीस दी, कहीं बिल, कहीं ब्याज दिया, कहीं जुर्माने के नाम पर तो कहीं रिश्वत के नाम पर पैसे  देने पड़े, ये सब ड्रामे के बाद गलती से सेविंग में बचा तो फिर टैक्स दिया---- सारी उम्र काम करने के बाद कोई सोशल सिक्युरिटी नहीं,कोई मेडिकल सुविधा नहीं, पब्लिक ट्रांस्पोर्ट नहीं, सड़कें खरा