संसद में चर्चा होनी चाहिए थी किस बात की, और हो रही है किस बात पर..!?

 संसद में चर्चा होनी चाहिए थी किस बात पर और हो रही है किस बात पर....!


संसद सत्र में आए दिन कुछ न कुछ बबाल की खबरे आती रहती है, उस वजह से विपक्षी कई सांसदों को सत्र के दौरान सस्पेंड भी किया गया, और वो सांसद संसद के बाहर धरना भी दे रहे है.


संसद में चर्चा होनी चाहिए थी महंगाई, शिक्षा, रोजगार और गुजरात के लट्ठाकांड में मारे गए लोगो के दोषी कौन उस पर...! पर चर्चा हो रही है कोंग्रेस नेता अधिरंजन की जबान फिसली और राष्ट्रपति को राष्ट्रपत्नी बोल दिया, हालाकि गलती समझ में आने के बाद उसने माफी भी मांग ली फिर भी सत्ताधीशों ने उस बात को मुद्दा बना दिया और सांसद में स्मृति ईरानी ने तो यहां तक बोल दिया की आदिवासी महिला राष्ट्रपति से कोंग्रेस को दिक्कत है. अरे भाई सब कुछ ऑन रिकॉर्ड तो हो रहा है उसमे दिक्कत वाली बात कहा से आ गई ????


नारा था "बहुत हुई महंगाई की मार, अब की बार मोदी सरकार"... पर वादा ही भूल गए..!


खेर अब आते है असली मुद्दे पर संसद में चर्चा होनी चाहिए थी महंगाई पर क्योंकि 25 किलो तक के पैकेट में मिलने वाली कुछ खाद्य वस्तुओं पर GST लगने के साथ ही बाजार में महंगाई की एक और लहर आ गई है. हैरानी की बात तो ये है की सिर्फ 5% GST लगने के बाद भी चावल, आटा और दाल तो 8% से लेकर 22% तक महंगे हो चुके है.


पिछले 8 साल में महंगाई की बात करे तो ड्राइविंग लाइसेंस, स्टील, मकान बनाने में जो रेत का इस्तमाल किया जाता है, सीमेंट, केबल टीवी रिचार्ज, टू व्हीलर, गैस सिलेंडर, खाद्य तेल, पेट्रोल, डीजल, PNG, CNG, बैंक का चेक बुक, अस्पताल के बेड, होटल के रूम सब कुछ तो महंगा हुआ है. उस पर भी विपक्ष सरकार से सवाल कर सकता था पर सदन से सस्पेंड करने के बाद संसद भी किससे सवाल कर पाएंगे ???? माना की सरकार ने खुद की तिजोरी भरने के लिए GST लगाना जरूरी समझा पर खुद को सब का साथ और सब का विकास कहने वाली सरकार ने ये क्यो नही सोचा की इतनी महंगाई का बोझ आम आदमी कैसे ढो पाएगा ???



वादा था था है साल 2 करोड़ रोजगार का...?!!!


मोदी सरकार ने सत्ता पाने के लिए यूवाओ को अपना हथियार बनाया क्योंकि हमारे देश में सबसे ज्यादा मतदाता युवा है. मोदीजी ने अपनी सभाओं से एलान शुरू कर दिया की भाजपा की सरकार आएगी तो हर साल 2 करोड़ लोगो को रोजगार दिया जायेगा. युवा भी क्या करे ??? झांसे में आ गए और एक बार नही 2/2 बार केंद्र में भाजपा की सरकार बनवा दी, फिर क्या ?

नया स्लोगन जैसे आ गया हो, "अपना काम बनता, भाड़ में जाए जनता" ऐसा ही हाल यूवाओ का हुआ. हर क्षेत्र के युवा आज बेरोजगार घूम रहे है, या एक्जाम का इंतजार कर रहे है, एक्जाम अगर हो गया और पेपर नही फूटा तो रिजल्ट के इंतजार में मारा मारा फिर रहा है.


जो लोग सरकारी नोकरी का इंतजार करिए करते थक गए है उन लोगो ने अब शर्म को साइड पर रखकर अपने और अपने परिवार को मदद करने के उद्देश्य से कुछ न कुछ छोटा बड़ा व्यापार शुरू कर दिया है, पर उसमे भी उनको GST ने परेशान तो करना ही था. ना नोकरी मिली, ना व्यापार अच्छे से हो रहा है.

आज देश की जनता महंगाई से ज्यादा त्रस्त हो चुकी है, क्योंकि कोरोना की वजह से कई लोगो का रोजगार या तो छूट गया है, बंद हो चुका है, या तो मंदी से चल रहा है. छोटे व्यापारी या आम आदमी के पास इतना जुगाड भी नही होता की वो 2/4 महीना भी अगर रोजगार ना हो तो अपना और अपने परिवार का निभाव कर पाए. फिर अचानक हर बार बढ़ती महंगाई से कैसे लड़ पाएगा आम आदमी ????




कहने का मतलब ये है की संसद भवन में एक दिन का खर्चा हो या एक घंटे का जो भी खर्चा हो रहा है वो आप, हम और जो हमारे देश की जनता टेक्स भर रही है उसमे से ही तो हो रहा है. पर देखने वाली बात ये है की हमारे वोट से चुनकर आए संसद हमारी परेशानियों की बात संसद भवन में रख नही पा रहे...!

गोदी मीडिया ने गंद मचा रखा है वो अलग से...!


देश के चौथे स्तंभ में गिना जानेवाला ज्यादातर मीडिया आज पैसे की खनक को सुनकर नाचनेवाले कोठे की तरह हो चुका है, जो जनता की परेशानी नहीं देख सकता सिर्फ जनता को मिलनेवाली सुविधा से सरकार को कितना नुकसान होगा वही दिखाने में व्यस्त है. मीडिया का काम होता है जनता की आवाज को सत्ताधीशों तक पहुंचाना पर आज का गोदी मीडिया सिर्फ सरकार की तानाशाही को जनता तक पहुंचाने का काम कर रहा है.


जनता आखिर जाए तो जाए कहा ? और करे तो क्या करे ???








कल्पेश रावल

पत्रकार एवं संपादक 

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