Online शिक्षा, प्रमोशन, शिक्षण का सत्यनाश

 Online शिक्षा, प्रमोशन और शिक्षणका सत्यानाश

आज हमारे देश में ऐसा ही चल रहा है. क्योंकि कोरोना की वजह से जगह जगह पर लोक डाउन लगा दिया गया है, उसकी वजह से शिक्षा संस्थानों को भी बंद कर दिया गया है, पर स्कूल संचालकों की कमाई बंद न हो उनका पूरा ख्याल रखा गया है. इसलिए तो सरकार की गाइड लाइन के हिसाब से Online शिक्षा शुरू करवाई गई है.

आप लोगो के बच्चो का भविष्य न बिगड़े इसलिए आपने आपकी मर्जी हो या न हो फिर भी Online शिक्षा का स्वीकार कर लिया है. अच्छी बात है कोरोना काल में भी बच्चे घर पर बैठकर पढ़ाई कर सकते है. पर कभी उस परिवार का पालन कर रहे मुखिया का सरकार ने नही सोचा, राहुल गांधी ने बार बार कहा की लोक डाउन में जनता के पास पैसा खतम हो चुका है उनके एकाउंट में 6000 ₹ ही डाल दीजिए जिनसे वो अपने परिवार को पाल सके. परिस्थिति से वाकिफ होने के बावजूद सरकार ने आम जनता की अनदेखी कर दी है.

सरकार का कहना है की राशन तो फ्री में दे रहे है. पर सबको पता है, सिर्फ राशन देने से घर का पालन नहीं होता.

घर का बिजली का बिल, किराया, घर का घर हो तो हाउस टैक्स, नल का टेक्स, दूध का बिल, इनके अलावा बच्चो के लिए ऑनलाइन पढ़ने के लिए पैसे न होने के बावजूद उनके मोबाइल के लिए खर्च करना ऊपर से इंटरनेट कनेक्शन के चार्ज अलग से. फिर आम आदमी क्या करेगा ?


हमारे देश में इंटरनेट कनेक्टिविटी का हाल


हमारे भारत देश में इंटरनेट कनेक्टिविटी की हालत तो आप सब जानते ही होंगे, अगर नही जानते तो आपको बता दू की ग्राम्य विस्तार में सिर्फ 4% और शहरी  इलाकों में 26% तक कनेक्टिविटी ही मिल पा रही है. कई गांव ऐसे है जहा पर आज भी किसी भी प्रोवाइडर का नेटवर्क नही मिल रहा. गांव के लोग पेड़ पर चढ़कर या तो गांव में किसी ऊंची जगह पर जाकर इंटरनेट का उपयोग बड़ी मुश्किल से कर पा रहे है, और शहरों में भी कई जगह ऐसी होती है जहा आपको नेटवर्क मिलने में दिक्कत आती ही रहती है.

फिर आप अपने बच्चो को पढ़ाएंगे कैसे ? शहर का तो ठीक है की आप अपने बच्चो को प्राइवेट स्कूल से निकालकर सरकारी स्कूल में भी बिठा देंगे, यहां आपको स्कूल का ऑप्शन भी मिल जाता है, पर छोटे छोटे कस्बे में तो स्कूल भी एक ही होता है, वहा आप कितने बच्चो को पढ़ा सकेंगे. और सरकारी स्कूलों में भी तो अध्यापक पूरी संख्या में नही है, और ना ही स्कूल का स्ट्रक्चर इतना है की वहा हर वर्ग के छात्रों को अलग अलग बिठाकर पढ़ाया जाए. दिक्कत तो वहा पर भी आएगी. सिर्फ इंटरनेट प्रोवाइडर कंपनियों ने दाम बढ़ाकर कितना पैसा कमाया है उनका आंकड़ा तो करोड़ों में है वो भी सिर्फ दो साल में.



ड्रॉप आउट रेशियो कितना बढ़ेगा ?


पहले बात करें लड़कियों की तो शहर से लेकर गांव तक कोई भी माता पिता अपनी लड़कियों का भविष्य बर्बाद नहीं करेगा. यह बात तो सही है, पर दिक्कत यह है कि गांव में पढ़ने वाली बेटियों को शिक्षा नहीं मिलेगी. तो उनके माता-पिता बेटियों की शादी कम उम्र में करने लगेंगे फिर हालत क्या होगी यह आप सोच भी नहीं पाएंगे. कम उम्र में शादी के बाद बच्चे भी जल्द ही पैदा होंगे. आज हम जनसंख्या नियंत्रण पर बात कर रहे हैं. कानून ला रहे हैं, पर उस कानून का तो कोई मतलब ही नहीं रहेगा.


बेटो की बात करे तो जो माता पिता सही तरह से अपने घर का गुजरा नहीं चला सकता वह माता-पिता अपने बच्चों को पढ़ाएंगे कैसे ? क्योंकि आमदनी है नही, स्कूल फीस चुका नही पा रहे तो बच्चो को स्कूल से उठाकर बच्चो के पास मजदूरी ही करवाएंगे, इस तरह बाल मजदूरी का आंकड़ा भी बढ़ेगा ही बढ़ेगा. क्योंकि हाल में भी हमारे देश में बाल बजदूरी कानून के तहत अपराध है, पर प्रशासन की लापरवाही और मध्यम वर्ग की मजबूरी के तहत बाल मजदूरी चल ही रही है. साथ साथ बाल तस्करी भी बढ़ने के आसार नजर आ रहे है, क्योंकि बच्चो को अकेले मजदूरी करने भेजेंगे तो उनका ख्याल कौन रखेगा ? वैसे भी आपने पढ़ा ही होगा पिछले समय में बाल तस्करी में कई राजनेताओं के नाम भी आए थे, जिनकी जांच अभी तक चल रही है.


बच्चो की वैक्सीन के बिना बच्चो को स्कूल भेजना कितना हितावह ???


आज हमारे भारत में जब हम 18 साल से ऊपर के व्यक्तियों को भी वैक्सीन के डोज पूरी मात्रा में नही दे पा रहे, और बच्चो लिए तो वैक्सीन भी बनी नही तब स्कूल जाने वाले बच्चे कितने सुरक्षित रहेंगे ? क्या किसी ने ये सोचा है ? तीसरी लहर की तैयारी के रूप में हमने शमशान में लकड़ियां,और अस्पताल में बेड की संख्या भी बढ़ा कर रखी है. कई देशों में तीसरी लहर शुरू भी हो चुकी है. बड़ी संख्या में बच्चो की मौत भी हुई है. तो फिर स्कूल खोलने का फैसला क्यो लिया गया ? माना की पढ़ाई जरूरी है, पर क्या हम अपने बच्चो पर एक्सपेरिमेंट करेंगे ? और क्यों ?

क्योंकि स्कूल जाते हुए बच्चे अन्य लोगो के संपर्क में भी आयेंगे. जैसे रिक्शा वाला, स्कूल बस वाला, पेट्रोल या डीजल भरवाने गाड़ी रुकेगी तो वहा, केंटीन वालो के वैसे ही कई जगह संपर्क में आयेंगे, तो क्या गेरंटी की उनको कोरोना नही होगा ???

समाजदारी इसमें ही है की बच्चो के मां बाप और वाली कुछ समझे. सिर्फ स्कूल संचालकों के भले के लिए हम अपने बच्चो को खतरे में नही डाल सकते.








 Kalpesh Raval

Journalist




टिप्पणियाँ

  1. यह सब कुछ हमारे देश में एक षड्यंत्र के तहत सारा काम हो रहा है जो 2025 तक लगभग चलेगा और तब तक हमारे देश की अर्थव्यवस्था, पढ़ाई लिखाई, लोगों से मिलना जुलना बाद व्यवहार सब खत्म हो चुकेगा... दुनिया के किसी भी देश ने अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए स्कूल बंद नहीं करवाए... जो कुछ हो रहा है भारत के साथ बहुत अनर्थ हो रहा है

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

ब्राह्मण कौन है ???

સૌરાષ્ટ્રની સૌથી મોટી હૉસ્પિટલમાં ખૂન, તંત્રને ખુલ્લો પડકાર..!?

ગરબા અને દાંડિયા વચ્ચેનો ભેદ સમજ્યા વગર ટીકા કરતા લોકો...