जो जीता वही सिकंदर ? हारने वाला कुछ नही ???
जीतनेका श्रेय सब ले रहे है,
हारने वाले को कोई नही पूछ रहा...!?
में बात कर रहा हु टोक्यो ओलंपिक की. वैसे तो आप सब समझदार है. पर आज ये बात करना जरूरी बन गया है. क्योंकि आज खेल में भी राजनीति घुस चुकी है. जीतनेवाले खिलाड़ियों के लिए सब कोई कह रहा है की ये हमारी वजह से जीत कर आए.
पर
हारकर आने वाले खिलाड़ियों ना तो कोई पूछ रहा है, ना गोदी मीडिया उनकी चर्चा कर रहा है, और ना ही नेता कह रहे है, की हमारी गलती की वजह से ये खिलाड़ी की हार हुई.
दिन ब दिन खेल को प्रोत्साहित करने की बजाय खेल बजट में कमी की जा रही है. खेल की शुरुआत स्कूल से होती है, पर आज 95% स्कूल ऐसे है जहा आउटडोर गेम्स के लिए ग्राउंड तक नही है. सरकार ने 2018 ने खेलो इंडिया लॉन्च करके करोड़ों रुपिया खर्च करके खुद की पब्लिसिटी भी करवाई और जनता के स्थान खिलाड़ियों को भरोसा दिलाने का दिखावा किया की सरकार खिलाड़ियों की परवा करके उनके बारे में कुछ कर रही है.
आज हालत क्या है ? किसी भी पूर्व खिलाड़ी की कोई पूछ नही रहा, आज वो खिलाड़ी किस हालात में अपना जीवन जी रहा है, ये पूछने की भी किसी को फुर्सत नही. आज जिस खेलाडियो की चर्चा हो रही है, जो खिलाड़ी ओलंपिक में गए वो भी ज्यादातर खिलाड़ी ऐसे है जिनकी चर्चा ओलंपिक शुरू होने से एक हफ्ते पहले ही हुई.
तब तक किसी भी खिलाड़ियों को कोई नेता या न्यूज चैनल वाला पूछने नही गया, की वो खिलाड़ी कैसे हालात में अपने देश के लिए मेडल जीतने केयर तैयार हुआ है ?
जो जीत गया वो सिकंदर
बात तो जितने वालो की ही हो रही है, जितने वाले खिलाड़ियों के लिए करोड़ों रूपये के इनामों की घोषणा राज्य सरकारों द्वारा की जा रही है. कोई राज्य जितने वाले खिलाड़ी को सरकारी नोकरी देने की भी बात कर रहा है. पर जो खिलाड़ी ओलंपिक के भारत का प्रतिनिधित्व करके हारकर आया उनके लिए अभी तक किसी भी राज्य सरकार ने या खुद केंद्र सरकार ने कोई घोषणा नही की, वो बड़े शर्म की बात है.
एक खिलाड़ी को ओलंपिक के लिए तैयार होने के लिए कम से कम 10/15 साल लग जाते है, उस समय तक उस खिलाड़ी के परिवार का गुजारा कैसे होता है ? उनका परिवार खिलाड़ी के लिए खर्च कर पा रहा है या नही ? वो देखने की किसी ने तस्दी तक नही ली.
भारत के राष्ट्रीय खेल हॉकी के पूर्व खिलाड़ी आज कहा है ? वो किस हाल में अपना परिवार संभाल रहे है ? किसी ने पूछा क्या ?
136 करोड़ के देश में से हम सिर्फ 115 खिलाड़ियों को तैयार कर पाए है. खेल पर बजट कम होता जायेगा तो खिलाड़ी कैसे तैयार होंगे ? दूसरे देशों में प्राइवेट सेक्टरवाले भी अपने खिलाड़ियों को स्पॉन्सर्ड करते है, पर हमारे भारत में सिर्फ क्रिकेट को ही स्पॉन्सर्ड किया जाता है.
आज जो पत्रकार जीतनेवाले खिलाड़ियों की चर्चा कर रहे है, उनमें से कितने पत्रकार इन खिलाड़ियों को ओलंपिक से पहले जानता था ? क्या हमारे खेल मंत्री अनुराग ठाकुर 115 खिलाड़ियों को ओलंपिक से पहले से जानते थे ? ऐसे हालात में खिलाड़ियों का हौसला कौन बढ़ाएगा ?
सरकार खुद की पब्लिसिटी के लिए तो हजारों रुपिया खर्च करते रहते है, पर देश के लिए खेलकर देश के लिए मेडल जीतकर देश का नाम रोशन करने वाले खिलाड़ियों को तैयार करने के लिए सरकार पूरा बजट भी नही देती.
बड़े शर्म की बात है.
Kalpesh Raval
Journalist
शानदार
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