जीत के कोलाहल में ज्वलंत समस्याओं को दफनाने का प्रोपेगेंडा
जीत के जश्नके "शोर" में जनताकी "चीखे" दबाने की भरपूर कोशिश : सरकारकी नाकामी भुलाने का प्रोपगेंडा
जब से ओलंपिक शुरू हुआ है तब से लेकर जब मीराबाई चानू ने मेडल जीता तब से लेकर नीरज चोपड़ा के गोल्ड मेडल जीतने के साथ साथ गोदी मीडिया और राज्य सरकारों ने जैसे जनता के मुद्दो को ही दफन कर दिया है. जीत का जश्न होना जरूरी है, देश के लिए गर्व की बात है की हम ओलंपिक में मेडल जीतकर आए है, पर उस खुशी के नीचे जनता की चीखों को दबाने की कोशिश जो की जा रही है वो शर्मनाक है.
क्योंकि गोदी मीडिया और सरकारों द्वारा ऐसा माहौल क्रिएट किया जा रहा है, जैसे देश में जीत के अलावा और कोई बात ही नही की जा रही.
सदन में सत्र के दौरान विपक्ष की बातो को नजरंदाज करके विपक्ष को बोलने नही दिया जा रहा, लगभग पूरा सत्र बरबाद कर दिया गया. सत्र के दौरान 20 से ज्यादा बिल विपक्ष की गैर मौजूदगी में पास भी किए गए, पर जनता के हित की बात एक बार भी नही हुई.
संसद के सत्र में बात होनी चाहिए थी किसानों की, महंगाई की, स्कूल से ड्रॉप आउट कर रहे स्टूडेंट की, कोरोना महामारी में परेशान लोगो की, देश में चल रही व्यापार में मंदी की, महिलाओं की सुरक्षा की, पेट्रोल डीजल के बढ़ते दाम की, पर इनमे से एक भी बात का जिक्र तक सदन में सत्र के दौरान नही किया गया.
जनता के पैसे से तनख्वाह पा रहे सासंद जनता के ही वोट से चुनकर आते है, जनता इसलिए उनको वोट करती है, की वो उनकी परेशानियों को सदन में रखकर न्याय दिलाएगा. जब तनख्वाह बढ़ाने की बात आती है तो सब एक साथ हो जाते है, पर जनता के मुद्दो पर चर्चा करने का समय किसी के पास नही है. शासक तो शासक पर विपक्ष भी किसी मुद्दे पर एक साथ खड़ा होता नही दिख रहा. आखिर जनता की परेशानी कौन सुनेगा ? और समस्या का हल कब होगा ??
कोरोना महामारी और लोक डाउन से त्रस्त
कोरोना महामारी शुरू होने से लेकर अब तक देश की राज्य सरकारों और केंद्र सरकार द्वारा लगाए गए लोक डाउन और रात्रि कर्फ्यू से देश का आम नागरिक बुरी तरह बरबाद हो चुका है. महामारी में कई लोगो के परिवार से किसी न किसी व्यक्ति को छीन लिया ऊपर से ऑक्सीजन, इंजेक्शन, अस्पताल में महा मुश्किल से बेड मिले जिनकी वजह से जनता की जेब तो वैसे भी खाली हो चुकी थी, ऊपर से सरकार ने पहले लोक डाउन लगाया और अब रात्रि कर्फ्यू. आम आदमी अपना व्यापार कैसे चलाएगा ? शाम के समय जिन लोगो के रोजगार शुरू होते थे, वो तो 80% तक बंद हो गए.
क्योंकि व्यापारियों का रोजगार शुरू होने के एक या दो घंटे के बाद ही कर्फ्यू लग जाता है, तो व्यापारी व्यापार कैसे करेगा ?
किसान सड़क पर संसद चला रहे है, पर संसद में बैठे नेता किसानों की चर्चा नही कर रहे...!
कई महीनो से किसान बिल के विरोध में देश का किसान घर बार, खेतीवाड़ी छोड़कर दिल्ली बॉर्डर पर धरना दे रहा है. किसानों की बात कोई सुन नही रहा. गोदी मीडिया के द्वारा किसानों पर विदेशी फंडिंग, कोरोना स्प्रेडर, विपक्षी टेकेदार समेत कई इल्जाम जड़ दिया गया. जब की गोदी मीडिया के कहने जैसा कोई भी कारण नही है. किसानों द्वारा बिल के विरोध में अलग अलग कार्यक्रम किए जा रहे है, यहां तक की संसद के सामने किसान संसद तक शुरू की गई, उसमे किसानों ने किसान बिल से आने वाली तकलीफों को उजागर किया. पर सत्ता के घमंड में बैठी सरकार को किसानों की तकलीफ न ही दिख रही है, और ना ही सुनाई दे रही. सरकार का कहना है की हम किसानों से बात करने को तैयार है पर किसान बिल पर नही. ये तो वही बात हो गई चिट भी मेरी और पट भी मेरी. सरकार का फर्ज है की जिस जनता के वोटो से चुनकर वो सत्ता में आए है, उनकी बात सुने और परेशानी का हल निकाले. किसानों के पास हल है, पर सरकार को वो हल मंजूर नहीं. जब कोई आंदोलन करने पर उतरता है तो उनकी अपनी मजबूरियां और तकलीफ भी होती है, तभी तो कोई घर बार छोड़कर गर्मी, शर्दी और बारिश में इतने दिनो से सड़को पर धरना दे रहा है. किसान विरोध के चलते बंगाल चुनाव में भाजपा को मुंह की खानी पड़ी, फिर भी संसद में 303 सदस्यों से चुनकर आने के बाद घमंड अभी तक नही उतर रहा. किसानों ने भी कह दिया है, जब तक तीन कानून वापस नही लिए जायेंगे तब तक घर वापसी नही करेंगे. तो फिर किसानों की मांगों का हल क्यो निकाल नही रहे .??
मंदी और महंगाई से परेशान व्यापारी और जनता
देश के व्यापारी का हाल आज सब कोई देख रहे है, लोकल मार्केट में भयंकर मंदी छाई हुई है, क्योंकि लोकल मार्केट में ग्राहक ही नही दिख रहे. आज व्यापारियों का हाल ये है की उनको अपने कर्मचारियों को तनख्वाह तक देनी भारी पड़ रही है. क्योंकि व्यापार होगा तभी तो व्यापारी कमाकर अपने कर्मचारियों की तनख्वाह देगा. इसी वजह से आज कई छोटे छोटे व्यापारियों ने अपने कर्मचारियों को रुखसत कर दिया है. और खुद ही कर्मचारी का काम कर रहे है.
आम जनता का ये हाल है की, घर में किसी न किसी सदस्य की नौकरी चली गई है. जो बरसों तक एक जगह नौकरी कर रहा हो उनकी नौकरी चली जाने से और घर में पैसे कम आने से दिक्कतें तो होगी ही. ऊपर से घर चलाने के लिए जो सामान चाहिए उनमें देखने जाए तो सभी चीजों के जैसे रसोई गैस, बिजली बिल, राशन, पेट्रोल, डीजल, दूध, मकान किराया, स्कूल फीस सभी में बढ़ोतरी हो गई है. अब आम जनता जब बेरोजगार हो तो कब तक परिवार का बोझ जेल पाएगी ? दूसरे देशों की सरकारों ने अपनी जनता के एकाउंट में केस पैसे डाल दिए है तो उनको कोई दिक्कत नही आ रही, पर हमारे यहां राहत पैकेज की घोषणा तो कर दी गई है पर वह राहत पैकेज भी कहीं पर नजर नहीं आ रहा. ऐसे में आम आदमी उल्टे चलते करने लगेगा जिससे हालात और खराब होने वाले हैं. बच्चों की पढ़ाई नहीं होगी, घर में राशन खत्म हो जाएगा, रोजगार नहीं होगा, मकान मालिक को देने के लिए किराया नहीं होगा, तो आम आदमी करेगा क्या ? इसके बारे में भी सरकार को सोचने की जरूरत है पर आम आदमी की कोई सोच नहीं रहा.
खिलाड़ियों पर मेहरबान सरकार आम जनता पर नाखुश क्यो ????
कोर्ट के कहने पर भी कोरोना में मारे गए लोगों को देने के लिए सरकार के पास पैसा नहीं है पर जो खिलाड़ी ओलंपिक में मेडल लेकर आ रहा है उन पर खर्च करने के लिए और उनको देने के लिए सरकार के पास करोड़ों रुपया है. देश में कोरोना महामारी, मंदी, बेरोजगारी, महंगाई, महिला सुरक्षा जैसे अनेक मुद्दे है पर सरकार को इस मुद्दे पर चर्चा करने का समय तक नही है. गोदी मीडिया द्वारा आज देश में इस तरह का माहौल पैदा किया जा रहा है. जैसे देश में खिलाड़ियों के जीतने के अलावा कोई मुद्दा ही नहीं है. आम जनता के मुद्दे मीडिया से गायब हो चुके हैं. विपक्ष की आवाज को मीडिया में दिखाया नहीं जा रहा. करुणा काल में भी विपक्ष ने जनता के लिए बहुत कुछ किया है पर उस काम को कहीं भी दिखाया नहीं जा रहा इसलिए तो योगी जी बोल रहे हैं कि विपक्ष ने कुछ काम नहीं किया. झूठ का झुनझुना आखिर कब तक बजता रहेगा ????
विपक्ष को संसद में पेगासस को लेकर हंगामा करके क्या मिला ? क्या खोया ?
19 July से सदन का सत्र शुरू हुआ तब से लेकर आज तक सदन में 12 से लेकर 20 घंटे तक कि काम हुआ है जबकि रोज 8 घंटा काम होना चाहिए. विपक्ष को पहले ही समझ जाना चाहिए था, की जो राफेल में हुआ वैसा ही पेगासस में होने वाला है, फिर एक ही मुद्दे को लेकर इतना हंगामा क्यों किया ? मोनसुन सत्र आधे से ज्यादा खत्म हो चुका है पर जनता के मुद्दे मंदी, महंगाई, महामारी, बेरोजगारी, किसान बिल पर एक भी चर्चा नही हुई.
फिर भी विपक्ष की गैर मौजूदगी में बहुमत की सरकार ने 20 से ज्यादा बिल तो पास कर लिए. उनमें से एक भी बिल स्टेंडिंग कमिटी में भी भेजने की जरूरत सरकार को नहीं लगी. ऐसा क्यों होने दिया इसकी जिम्मेदारी विपक्ष को भी लेनी पड़ेगी.
चुनाव के समय वोट लेने जाते हैं, तब जनता को आप तारे तोड़कर लाने की बात करते हैं, पर जब जनता का बुरा समय आता है और जनता परेशान हो रही होती है, तब आप उनके लिए सोचते तक नहीं फिर जनता आपको दोबारा सत्ता पर कैसे बिठाएगी ???
Kalpesh Raval
Journalist
एकदम खरी बात...विशेषकर एक ही प्रकार के मुद्दे पर एक ही प्रकार के विरोध की पुनरावृत्ति और हर बार सामाजिक मुद्दों पर बहस का दफन हो जाने की पुनरावृत्ति। संयोग या प्रयोग..?
जवाब देंहटाएंसही समय पर सही चर्चा होनी जरूरी है, पर विपक्ष के आंख में धूल झोंकना सत्तापक्ष और गोदी मीडिया को अच्छी तरह आता है. कोई समझ ही नही रहा.
हटाएंएकदम बरोबर छे.
जवाब देंहटाएंआम जनता की आवाज औंर मजबूत होनी चाहिए.
कोशिश तो करनी ही पड़ेगी
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