जनेऊ क्यो पहनी जाती है ??? #Ravalkalpesh_s

 यज्ञोपवित हो सामान्य बाल्य वस्था से युवा अवस्था करती संस्कार विधि है. जनेऊ कर धागे सूत के बने हुए साधारण होते है, फिर भी वो ब्राह्मणों का आभूषण है. जो अमूल्य है, जिससे देवता - पितृओ और समाज का ऋण चुका सकते है.




यज्ञोपवित धारण करने के मुख्य तीन कारण है.

सत्य, व्यवहार में चरित्रशीलता और दिव्यगुणो का आविष्कार. ये तीनो संस्कार यज्ञोपवित क्रियाविधि द्वारा बाल्य के संस्कार में डालने के लिए संपन्न किया जाता है. श्रावण सूद पूर्णिमा के सुप्रभावेत अन्नादि कार्य पूर्ण करके पूजा मंदिर में इष्टदेव का पूजन करके सूर्य नमस्कार दारा गायत्री मंत्र का उच्चारण किया जाता है.


पूर्ण श्रद्धा से त्रिदेव ब्रम्हा, विष्णु, महेश के मंत्र स्मरण के बाद यज्ञोपवित में गायत्री मंत्र का आह्वान किया जाता है. जिससे ये जनेऊ का धागा एक अकल्प्य, अमूल्य, ब्रह्मसूत्र बन जाता है. जो गायत्री माता समान पूजनीय पवित्र मानकर जनेऊ को वर्ष भर स्वच्छ रखकर उनका जतन किया जाता है. 


पुरानी जनेऊ निकलते वक्त नीचे के मंत्र के भावार्थ का उच्चारण किया जाता है. "है ब्रह्मसूत्र ये पूरा साल आप मेरे ब्रह्मसुत्रत्व का रक्षण किया है. किंतु वो जीर्ण होने पा उनका त्याग कर रहा हु. जिसके लिए में क्षमा चाहता हु. इस प्रकार से ही आप मेरी रक्षा करते रहना.


नई जनेऊ पहनते समय नीचे के भावार्थ वाला मंत्र का उच्चारण किया जाता है.

"यज्ञोपवित विधि में परमपिता प्रजापति ईश्वर वास करते है, जो आयुस्यमान करते है, स्फूर्ति प्रदान करनेवाले, बंधनों से मुक्त करनेवाला है. जो हमे तेजस्वी बनाते है और शक्ति देते रहते है. यज्ञोपवित मतलब जनेऊ, जो सिर्फ धागे नही, परंतु उनको ब्रह्मसूत्र का नाम मिला हुआ है. जिस प्रकार रखी का रक्षा सूत्र एक निर्मल स्नेह और भाई की रक्षा और दीर्धयुष्य के प्रतीक समान है.


उसी तरह ब्रह्मसूत्र जनेऊ गायत्री देवी के मंत्र के तीन चरणों के प्रतीक है. जिसका प्रथम चरण "ॐ तत्सवितुर्वरेण्य" दूसरा चरण भर्गो देवस्य धीमहि और तीसरा चरण धियो योनः प्रचोदयात" ये तीन गायत्री मंत्र के तीन चरण है. और उसका संदेश है. जो उत्तम बुद्धि के प्रेरणा घातक और रक्षा करता है. जनेऊ में तीन गांठ होती है, गायत्री मंत्र के प्रणव और तीन आहुति. ( ॐ.. भू.. भूव:.. स्व..) है. जो हर रूप में पवित्र स्वरूप में हमारी रक्षा करते है. और ब्रह्मत्व की प्रतीति कराता है.


सृष्टि में तीन ऋण मानव पर है. 1. देवऋण 2. ऋषिऋण और 3. पितृऋण...

योग्य जरूरी कर्तव्य पालन से ये तीनों ऋण चुकाने की प्रेरणा देने वाले ये जनेऊ के तीन धागे है. जिनको धारण करनेवाले आजीवन का आजीवन व्यक्तित्व का ब्रहमशक्ति रक्षण करती रहती है.









Kalpesh Raval 

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