नवरात्रि के महत्व को समझे और नई पीढ़ी को भी समझाए.
*1.) प्रथम शैलपुत्री यानि हरड़ -*
नवदुर्गा का प्रथम रूप शैलपुत्री माना गया है। कई प्रकार की समस्याओं में काम आने वाली औषधि हरड़, हिमावती है जो देवी शैलपुत्री का ही एक रूप हैं। यह आयुर्वेद की प्रधान औषधि है, जो सात प्रकार की होती है।
*हरीतिका (हरी)-* भय को हरने वाली है।
*पथया -* जो हित करने वाली है।
*कायस्थ -* जो शरीर को बनाए रखने वाली है।
*अमृता -* अमृत के समान।
*हेमवती -* हिमालय पर होने वाली।
*चेतकी -* चित्त को प्रसन्न करने वाली है।
*श्रेयसी (यशदाता) शिवा -* कल्याण करने वाली।
*2.) द्वितीय ब्रह्मचारिणी यानि ब्राह्मी -*
ब्राह्मी, नवदुर्गा का दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी है। यह आयु और स्मरण शक्ति को बढ़ाने वाली, रूधिर विकारों का नाश करने वाली और स्वर को मधुर करने वाली है। इसलिए ब्राह्मी को सरस्वती भी कहा जाता है।
यह मन व मस्तिष्क में शक्ति प्रदान करती है और गैस व मूत्र संबंधी रोगों की प्रमुख दवा है। यह मूत्र द्वारा रक्त विकारों को बाहर निकालने में समर्थ औषधि है। अत: इन रोगों से पीडित व्यक्ति को ब्रह्मचारिणी की आराधना करनी चाहिए।
*3.) तृतीय चंद्रघंटा यानि चन्दुसूर -*
नवदुर्गा का तीसरा रूप है चंद्रघंटा, इसे चन्दुसूर या चमसूर कहा गया है। यह एक ऐसा पौधा है जो धनिये के समान है। इस पौधे की पत्तियों की सब्जी बनाई जाती है, जो लाभदायक होती है। यह औषधि मोटापा दूर करने में लाभप्रद है, इसलिए इसे चर्महन्ती भी कहते हैं। शक्ति को बढ़ाने वाली, हृदय रोग को ठीक करने वाली चंद्रिका औषधि है। अत: इस बीमारी से संबंधित रोगी को चंद्रघंटा की पूजा करनी चाहिए।
*4.) चतुर्थ कुष्माण्डा यानि पेठा -*
नवदुर्गा का चौथा रूप कुष्माण्डा है। इस औषधि से पेठा मिठाई बनती है, इसलिए इस रूप को पेठा कहते हैं। इसे कुम्हड़ा भी कहते हैं जो पुष्टिकारक, वीर्यवर्धक व रक्त के विकार को ठीक कर पेट को साफ करने में सहायक है। मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति के लिए यह अमृत समान है। यह शरीर के समस्त दोषों को दूर कर हृदय रोग को ठीक करता है। कुम्हड़ा रक्त पित्त एवं गैस को दूर करता है। इन बीमारी से पीडित व्यक्ति को पेठा का उपयोग के साथ कुष्माण्डा देवी की आराधना करनी चाहिए।
*5.) पंचम स्कंदमाता यानि अलसी -*
नवदुर्गा का पांचवा रूप स्कंदमाता है जिन्हें पार्वती व उमा भी कहते हैं। यह औषधि के रूप में अलसी में विद्यमान हैं। यह वात, पित्त, कफ, रोगों की नाशक औषधि है।
*अलसी नीलपुष्पी पावर्तती स्यादुमा क्षुमा।*
*अलसी मधुरा तिक्ता स्त्रिग्धापाके कदुर्गरु:।।*
*उष्णा दृष शुकवातन्धी कफ पित्त विनाशिनी।*
इस रोग से पीड़ित व्यक्ति ने स्कंदमाता की आराधना करनी चाहिए।
*6.) षष्ठम कात्यायनी यानि मोइया -*
नवदुर्गा का छठा रूप कात्यायनी है। इसे आयुर्वेद में कई नामों से जाना जाता है जैसे अम्बा, अम्बालिका, अम्बिका। इसके अलावा इसे मोइया अर्थात माचिका भी कहते हैं। यह कफ, पित्त, अधिक विकार व कंठ के रोग का नाश करती है। इससे पीडित रोगी को इसका सेवन व कात्यायनी की आराधना करनी चाहिए।
*7.) सप्तम कालरात्रि यानि नागदौन -*
दुर्गा का सप्तम रूप कालरात्रि है जिसे महायोगिनी, महायोगीश्वरी कहा गया है। यह नागदौन औषधि के रूप में जानी जाती है। सभी प्रकार के रोगों की नाशक सर्वत्र विजय दिलाने वाली मन एवं मस्तिष्क के समस्त विकारों को दूर करने वाली औषधि है। इस पौधे को व्यक्ति अपने घर में लगाने पर घर के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। यह सुख देने वाली और सभी विषों का नाश करने वाली औषधि है। इस कालरात्रि की आराधना प्रत्येक पीडित व्यक्ति को करनी चाहिए।
*8.) अष्टम महागौरी यानि तुलसी -*
नवदुर्गा का अष्टम रूप महागौरी है, जिसे प्रत्येक व्यक्ति औषधि के रूप में जानता है क्योंकि इसका औषधि नाम तुलसी है, जो प्रत्येक घर में लगाई जाती है।
*तुलसी सात प्रकार की होती है- सफेद तुलसी, काली तुलसी, मरुता, दवना, कुढेरक, अर्जक और षटपत्र।*
ये सभी प्रकार की तुलसी रक्त को साफ करती है व हृदय रोग का नाश करती है।
*तुलसी सुरसा ग्राम्या सुलभा बहुमंजरी।*
*अपेतराक्षसी महागौरी शूलघ्नी देवदुन्दुभि:*
*तुलसी कटुका तिक्ता हुध उष्णाहाहपित्तकृत् ।*
*मरुदनिप्रदो हध तीक्षणाष्ण: पित्तलो लघु:।*
इस देवी की आराधना हर सामान्य व रोगी व्यक्ति को करनी चाहिए।
*9.) नवम सिद्धिदात्री यानि शतावरी -*
नवदुर्गा का नवम रूप सिद्धिदात्री है, जिसे नारायणी या शतावरी कहते हैं। शतावरी बुद्धि बल व वीर्य के लिए उत्तम औषधि है।
यह रक्त विकार औरं वात पित्त शोध नाशक और हृदय को बल देने वाली महाऔषधि है। सिद्धिदात्री का जो मनुष्य नियमपूर्वक सेवन करता है। उसके सभी कष्ट स्वयं ही दूर हो जाते हैं। इससे पीडित व्यक्ति को सिद्धिदात्री देवी की आराधना करनी चाहिए।
इस प्रकार प्रत्येक देवी आयुर्वेद की भाषा में मार्कण्डेय पुराण के अनुसार नौ औषधि के रूप में मनुष्य की प्रत्येक बीमारी को ठीक कर रक्त का संचालन उचित व साफ कर मनुष्य को स्वस्थ करतीं है। अत: मनुष्य को इनकी आराधना एवं सेवन करना चाहिए।
*नवरात्र में 9 दिन के 9 प्रसाद:*
मां दुर्गा को 9 दिन विशेष प्रसाद चढ़ते हैं। हर दिन का प्रसाद/भोग निश्चित है। पुराणों के अनुसार दिन के अनुसार भोग लगाने से मां तत्काल प्रसन्न होती है।
*प्रथम नवरात्र* के दिन मां के चरणों में *गाय का शुद्ध घी* अर्पित करने से आरोग्य का आशीर्वाद मिलता है तथा शरीर निरोगी रहता है।
*दूसरे नवरात्र* के दिन मां को *शक्कर का भोग* लगाएं व घर में सभी सदस्यों को दें। इससे आयु वृद्धि होती है।
*तृतीय नवरात्र* के दिन *दूध या दूध से बनी मिठाई खीर* का भोग मां को लगाकर ब्राह्मण को दान करें। इससे दुखों की मुक्ति होकर परम आनंद की प्राप्ति होती है।
*चतुर्थ नवरात्र* के दिन *मालपुए* का भोग लगाएं। और मंदिर के ब्राह्मण को दान दें। जिससे बुद्धि का विकास होने के साथ-साथ निर्णय शक्ति बढ़ती है।
*पंचम नवरात्र* के पांचवें दिन मां को *केले का नैवैद्य* चढ़ाने से शरीर स्वस्थ रहता है।
*छठवीं नवरात्र* के दिन मां को *शहद* का भोग लगाएं। इससे आकर्षण में प्रबल वृद्धि होगी।
*सातवें नवरात्र* पर मां को *गुड़ का नैवेद्य* चढ़ाने व उसे ब्राह्मण को दान करने से शोक से मुक्ति मिलती है एवं आकस्मिक आने वाले संकटों से रक्षा भी होती है।
*आठवें नवरात्र* के आठवें दिन माता रानी को *नारियल का भोग* लगाएं व नारियल का दान कर दें। इससे संतान संबंधी परेशानियों से छुटकारा मिलता है।
*नवम नवरात्र* की नवमी के दिन *तिल का भोग* लगाकर ब्राह्मण को दान दें। इससे मृत्यु भय से राहत मिलेगी। साथ ही अनहोनी घटनाओं से बचाव भी होगा।
नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाए
Kalpesh Raval
Journalist
ट्विटर : @Ravalkalpesh_s
बेहतरीन ,
जवाब देंहटाएंजय माता दी 🙏
जय माता दी 🙏👍
जवाब देंहटाएंबहुत ही सटीक तरीके से समझाया कल्पेश भाई बहुत ही बढ़िया👌👍
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया तरीके से वर्णन किया है आप ने पढ़ कर अच्छा लगा।👍🙏
जवाब देंहटाएं