"सब्जी मंडी और राजनीति"

 "सब्जी मंडी और राजनीति"

सब्जी मंडी और राजनीति पढ़ने में कुछ अजीब सा लग रहा होगा पर आजकी राजनीति में यही चल रहा है. इसको दो अलग अलग तरीकों से समझना जरूरी है.

(1) सब्जी मंडी



सब्जी मंडी में जब तरोताजा सब्जी आती है तब (बीचवाले) दलाल सब्जी के दाम तय करते है. फिर उसी दाम से ज्यादा जो व्यापारी पैसा दे पाएगा वही व्यापारी उस सब्जी को खरीद पाएगा.

सब्जी को खरीदने के बाद छोटे छोटे व्यापारी अपनी कमाई उस दाम पर बढ़ाकर सब्जी बेचते है, सुबह सुबह आप अगर सब्जी खरीदने जाओगे तो आप जैसे ही उनसे दाम कम करने को कहेंगे वैसे ही वो मना कर देगा की अगर आपको इसी दाम से सब्जी खरीदनी हो तो खरीदे नही तो आगे चले जाइए.

क्योंकि उनको पता है तरोताजा सब्जी ऊपर से शादियों का मौसम है तो शाम तक तो उचित दाम के सब्जी पूरी की पूरी बिक ही जाने वाली है, फिर वो अपनी कमाई क्यो छोड़ दे.

खेल अब शुरू होता है. जैसे जैसे दिन ढलने लगता है वैसे वैसे व्यापारी हर घंटे सब्जी को तरोताजा रखने की कोशिश करता रहता है. जैसे ही शाम हो जाती है, आप उसी व्यापारी के पास जाओ और उसी सब्जी के दाम को आप घटाने के लिए कहो जिस सब्जी के दाम आपने सुबह घटाने को कहा था, व्यापारी इस बार दाम घटाने से मना नही करेगा. क्योंकि पूरे दिन में जो सब्जी नही बिकी वो रात तक खाली भी तो करनी है. इसलिए वो आपके उचित दामों पर भी आपको सब्जी देने पर राजी हो जायेगा.


(2) अब राजनीति को समझिए



किसी भी राजनेता का सितारा जब आसमान पर होता है तब तक वह किसी भी छोटे कार्यकर्ता या किसी भी विपक्षी पार्टियों को सही तरह से जवाब भी नहीं देता. पर जैसे-जैसे उनके आज से सत्ता का दामन छूटने लगता है वैसे वैसे वह छोटे छोटे कार्यकर्ता और विपक्षी पार्टियों के भी करीब आने लगता है. क्योंकि जब सत्ता पर कोई भी नेता होते है तो उनको किसी की जरूरत नही होती, क्योंकि उस समय सत्ता ही उनके लिए भगवान है.

जैसे ही चुनाव नजदीक आने वाले होते है, वैसे ही दल बदलू नेताओ की सीजन शुरू हो जाती है. क्योंकि सत्ता लालचु नेता कभी बिना सत्ता एक पार्टी में नही टिक सकते. इसलिए सत्ता के मोह में वो अपने आपको विपक्षी पार्टियों के सहारे भी छोड़ देते है. जैसे ही मौका मिलेगा किसी न किसी पार्टी में शामिल हो जाते है. दूसरी पार्टी में जाने की वजह अलग अलग हो सकती है. जैसे पैसा, काम, सत्ता, दबाव, मजबूरी. पर उद्देश्य एक ही रहता है, सत्ताधारी पक्ष में रहना है.


कहने का तात्पर्य है की सब्जी हो या नेता उनकी कीमत समय पर ही होती है. शादियों और त्योहारों का मौसम खत्म, सब्जियों के दाम कम होने लगते है. वैसे ही चुनावी मौसम खत्म दल बदलू नेता दल बदलकर बैठ जाते है.


इसलिए कह रहा हु नेता को देखकर नही अपनी सोच पर विश्वास करके वोट देकर अच्छी सरकार बनाने के लिए वोट करे, नही की रिश्तेदारी और पार्टी देखकर. अच्छे लोग और सच्चे लोग तो सभी पार्टियों में होते है, पर जब नीतिया गलत हो जाती है तो पार्टी के नेता और कार्यकर्ता पार्टी को आखरी सलाम करके निकल ही जाते है.


धर्म और आस्था पर कभी वोट न करे, वोट शिक्षा, रोजगार, आरोग्य व्यवस्था और सरकार के पिछले कामों का आंकलन करके ही करे.


आपको आज का ब्लॉग कैसा लगा कमेंट करके बताइएगा जरूर.





Kalpesh Raval

journalist


twitter @Ravalkalpesh_s


टिप्पणियाँ

  1. शीर्षक की सटीक व्याख्या की है आपने 👌

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    1. बहुत ही जबरदस्त ब्लॉग लिखा है कई दिनों के बाद कल्पेश भाई आपने इसको हम लोग अखबार में देते हैं

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  2. कल्पेश जी बहुत ही बढ़िया तरीके से समझाया है आपने अपने ब्लॉग में👍

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  3. Bhahut badiya sir...ekdam haqikat...yahi he..
    Janta ko samjhna chahiye..vo neta ke liye nahi party ke liye nahi...balki apne desh ke liye vote karte he...desh rahega to hum rahenge..

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