TRP के चक्कर में गोदी मीडिया के घिनौने एजंडा से दूर होते दर्शक
गोदी मीडिया के अपने एजंडा चलाने को लेकर दिन प्रतिदिन दर्शकों ने ज्यादातर न्यूज चैनल को देखना बंद कर दिया है. वजह यही है की चैनल पर जातिवादी मानसिकता वाले डिबेट चलाना, अपने सेट किए गए प्रोपगेंडा चलाकर दर्शकों के दिमाग में जहर भरना.
टीआरपी के चक्कर में गोदी मीडिया अपना मुख धर्म भूल गया है. मीडिया का काम होता है जनता की आवाज को सरकार तक पहुंचाना और जनता की मांगों को सरकार के समक्ष रखना. पर आजकल हो क्या रहा है ???
गोदी मीडिया नाम ही इसलिए पड़ा है की वो न तो जनता की आवाज को सरकार के समक्ष रख रहा है और ना ही विपक्ष के सवालों को जनता के सामने रख रहा है. सरकार की वाह वाही करने के लिए सरकारी चैनल तो है ही फिर भी सत्ता पक्ष को कुछ मीडिया संस्थानों को गोदी में बिठाकर अपना एजंडा सेट करके चलाने की जरूरत इसलिए पड़ रही है क्योंकि पिछले 8 साल में सरकार के मुखिया द्वारा किए गए वादों में से एक भी वादा ठीक तरह पूरा नहीं किया गया.
फिर चाहे वो नोट बंदी हो, GST हो, कश्मीर से 370 कलम को हटाकर कश्मीरी पंडितो का पुनः स्थापन हो, महंगाई पर काबू पाना हो, बेरोजगारों को रोजगार देना हो, बेटियो की सुरक्षा हो वगेरह में से एक भी वादे को पूरा करने में सरकार खरी नहीं उतर पाई.
जब जब जिस जिस राज्य में चुनाव आ रहे हो उसी हिसाब से गोदी मीडिया द्वारा अपने एजंडे को सेट करके सरकार बनवाने के लिए सरकार की गोदी में बैठकर गोदी मीडिया अपना भी उल्लू सीधा करने में लगा हुआ है.
आपने देखा ही होगा कोई भी घटना घटे गोदी मीडिया पहले अपना एजंडा सेट करके डिबेट शुरू कर देता है, केस कोर्ट में पहुंचे उससे पहले तो गोदी मीडिया किसी एक पक्ष को गुनहगार भी साबित कर देता है और उनको क्या सजा हो वो भी तय कर देता है. फिर जब हकीकत सामने आए तो गोदी मीडिया मैदान छोड़कर भागता है क्योंकि स्टूडियो में बैठकर एंकरो द्वारा चलाए गए एजंडे की सजा फील्ड में जा रहे पत्रकारों को भुगतनी पड़ती है. गोदी मीडिया द्वारा चलाए जा रहे जूठ से जनता भी वाकिफ हो चुकी है, इसलिए कुछ चैनल के पत्रकार को फील्ड में देखते ही बोलने लगते है की आ गए गोदी मीडिया वाले. अपने फायदे के लिए कितना नीचे गिरोगे ???
किसी भी पॉलिटिकल घटना के लिए गोदी मीडिया का सवालिया निशान हरहमेश विपक्ष पर ही होता है. क्योंकि सरकार के सामने सवाल उठाने की हिम्मत नही होती. क्योंकि सरकार से सवाल किए तो सरकार द्वारा चैनलो को मिल रही जहेरखबर बंद हो जाएगी ऐसा डर भी लगा हुआ है. पर गोदी मीडिया के मालिक ये नही सोचते की हर वक्त जूठ परोसने से हमारे दर्शक कम हो रहे है जिस वजह से कॉरपोरेट कंपनिया जो चैनलो को जाहेरखबर 8 साल पहले देती थी वही कंपनिया आज चैनलो को जाहेरखबर देने से दूर होती जा रही है.
इसी बात से चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया जस्टिस एन. वी. रमन्ना ने मीडिया ट्रायल पर भी सवाल उठाए है. उनका कहना है की न्यायिक मामले और सामाजिक मुद्दे पर टीवी डिबेट और सोशल मीडिया पर चलाई जा रही आधी अधूरी एजंडा वाली "कंगारू कोर्ट" लोकशाही के लिए नुकसानदेह है. प्रिंट मिडिया जवाबदेही है पर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में जिम्मेदारी खत्म हो चुकी है. उसने कहा की नए मीडिया के पास अपार क्षमता है किंतु वो सच और जूठ, अच्छा और बुरा का भेद नहीं समझ पा रहा. इलेक्ट्रोनिक मीडिया एजंडा प्रेरित डिबेट कराते है, जिसकी वजह से कई बार अनुभवी जज भी सच और जूठ के फैसले लेने में निर्णय लेने में तकलीफ का सामना करते है.
मीडिया द्वारा फैलाए जा रहे पूर्वाग्रह से जनता भी प्रभावित होती है. इससे लोकशाही द्वस्त हो रही है और सिस्टम को भी नुकसान होता है. यही कारण है की सोशल मीडिया पर जिम्मेदारी बढ़ी है. मीडिया को सरकार या अदालतों में हस्तक्षेप की तक देने की बजाय खुद को संतुलित होना चाहिए.
सोशल मिडिया पर जजों के विरुद्ध में हो रही टिप्पणियों पर भी जस्टिस रमन्ना ने कहा कि जजों को लाचार न समझे, जज अपनी प्रतिक्रिया तुरंत नही दे सकते.
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कल्पेश रावल पत्रकार एवं संपादक |
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