कोंग्रेस की डूबती नैया बचेगी भी या नही ???

जी हां ऊपर का सवाल देखकर आपको भी सोचने की जरूरत नहीं पड़ेगी, क्योंकि पिछले कई चुनावो में आप कोंग्रेस का परफॉर्मेंस देखकर जान ही गए होंगे. कोंग्रेस में चुनाव लडने के लिए नेता तो मिल जाते है, पर जमीन पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं की और संगठन की कमी है जिससे आलाकमान भी वाकेफ है.



सोचने वाली बात ये है की महानगर पालिका के बाद विधानसभा चुनाव में भी करारी हार का सामना करने के बावजूद कोंग्रेस आलाकमान कही भी अपने पदाधिकारियों को बदलने के मूड में नही दिख रही, और पदाधिकारी भी गोंद लगाकर कुर्सी से चिपकर बैठ गए है और मन ही मन में सोच रहे है की जब आलाकमान को हार से कुछ फर्क नही पड़ता तो हमे क्यो फर्क पड़े ??? हम क्यों इस्तीफा दे ???


तत्काल हुए गुजरात के महानगर पालिका के चुनावो में सभी जगह कोंग्रेस की हार हुई, विधानसभा में भी मुश्किल से 17 विधायक चुने गए, पर प्रदेश या नेशनल लेवल के एक भी नेता ने हार की जिम्मेदारी लेते हुए अपना पद त्याग नही किया...


EVM पर हार का ठीकरा कब तक फोड़ेंगे ???


हर बार की तरह इस बार गुजरात में हार के बाद हार की समीक्षा तो हो रही है, पर हर बार की तरह इस बार भी आप हार का ठीकरा ईवीएम पर फोड़ेंगे तो कैसे चलेगा ??? क्योंकि हिमाचल में कोंग्रेस ने सत्ता भी तो पाई है...

खैर वो बात अलग है, पर एक बात तो सच है की जैसे भाजपा में उम्मीदवार नही पर भाजपा का संगठन चुनाव लड़ता है, वैसे कोंग्रेस में उम्मीदवार और उनका परिवार चुनाव लड़ता है, क्योंकि संगठन तो पूरी तरह बना ही नही, जहा बना है वहा संगठन की सुनने वाला कोई नही है....


2023 चुनावी साल है


हार हो गई खत्म हुआ, पर इस साल 2023 में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान समेत 9 राज्यों में विधानसभा चुनाव आने वाले है और कई जगह पालिका और पंचायत के चुनाव आने वाले है, उसके लिए भाजपा ने तो कमर कसनी शुरू भी कर दी है, पर कोंग्रेस हार की समीक्षा करने से फ्री नही हो पाई.

ऐसे ही चलता रहा तो छत्तीसगढ़ और राजस्थान में सत्ता है वहा पर भी हार का सामना कोंग्रेस को करना पड़ सकता है, क्योंकि राजस्थान में भी तो अशोक गहलोत और सचिन पायलट की गुटबाजी किसी से छिपी नहीं है... ऊपर से साल खत्म होते होते 2024 का लोक सभा चुनाव सर पर मंडरा रहा है. जब आपके पास जीते हुए राज्य भी नही रहेंगे तो आप 2024 की लड़ाई को कैसे जीतेंगे ????


भारत जोड़ो यात्रा से लाभ...


भारत जोड़ो यात्रा से राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और कोंग्रेस को भारी संख्या में जनता का समर्थन मिल रहा है, हा ये बात अलग है की गोदी मीडिया में भारत जोड़ो यात्रा को जगह नहीं दी जा रही. कोंग्रेस को मिल रहे अपार समर्थन को कोंग्रेस वोटबेंक में कैसे तब्दील कर पाएगी ये भी देखने वाली बात होगी.

क्योंकि, आपने देखा होगा उत्तरप्रदेश के चुनाव में प्रियंका गांधी और कोंग्रेस की सभा और रॉड शो के भिड़ तो जुट जाती थी, पर वही भिड़ को कोंग्रेस वोटबैंक में तब्दील नही कर पाई और करारी हार का सामना करना पड़ा.


कोंग्रेस को क्या करना चाहिए ???


कोंग्रेस को चुनावी राज्यों को छोड़कर दूसरे राज्य जहा 2024 तक चुनाव नही आ रहे उस जगह अपने संगठन में जमीनी स्तर से फेरबदल करना पड़ेगा तब जाकर कुछ काम बन पाएगा.

क्योंकि जब तक कुर्सी से चिपकर बैठने वाले पद मोहि नेताओ को उनकी सही जगह नहीं दिखाएंगे और कार्यकर्ताओं का हौसला नहीं बढ़ाएंगे तब तक 2024 का चुनाव जीतना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन ही होगा.

क्योंकि आलाकमान को भी पता है कई जगह पर कुर्सी चहक नेताओ के काम नही करने की वजह से ही कोंग्रेस को हार का सामना करना पड़ा है.

फिर उन लोगो को पद से हटाने में किस बात का इंतजार हो रहा है ???


मुद्दो की कमी नहीं है...


भाजपा कितना भी राम मंदिर और हिंदू - मुस्लिम करे किंतु विपक्ष के पास 2024 के लिए आजादी के बाद आज तक किसी भी विपक्ष के पास नही थे उतने मुद्दे है. सिर्फ उस मुद्दो को लेकर जनता के बीच जाना है और जनता को अपने समर्थन के लिए मनाना है और ये सभी मुमकिन होगा जब कोंग्रेस के पास मजबूत संगठन और कार्यकर्ताओं की फौज हो, जो वाकई खुद के लिए नहीं किंतु पक्ष के लिए काम करना चाहते हो.


जनता त्रस्त है...


जनता वाकई त्रस्त हो चुकी है, क्योंकि पीएम नरेंद्र मोदीजी द्वारा अच्छे दिन का जुमला दिखाया गया था वो गुब्बारा अब फूट चुका है. महंगाई आसमान छू रही है, व्यापारियों का व्यापार बरबाद हो चुका है, बेरोजगारी इतनी बढ़ चुकी है की पढ़े लिखे बेरोजगार युवा कुछ भी काम करके अपने परिवार का पेट भरने के लिए तैयार हो जाते है. महिलाओ के किचन का बजट बिगड़ गया है, महिलाओ की सुरक्षा का हाल तो आप देख ही रहे है, आए दिन महिलाओ से दुष्कर्म की खबरें अखबारों के पहले पन्ने पर आती रहती है.


किसान भी फिर से आंदोलन के मूड में...


पिछले दिनों हुए किसान आंदोलन में 700 से ज्यादा किसानों की जान जाने के बाद सरकार के वादे पर आंदोलन को स्थगित कर दिया गया था, पर सरकार अपने वादे पर खरी नहीं उतरी तो वही किसान अब फिर से आंदोलन करने के मूड में होने की खबर मिल रही है.

फिर भी अगर कोंग्रेस के आलाकमान कुछ नही कर पाए तो डूबती हुई कोंग्रेस को भगवान भी नही बचा सकता. सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी का भी कोंग्रेस को बचा पाना मुश्किल हो जायेगा. क्योंकि जब तक संगठन में कमी, पद लालची नेताओ का कुर्सी पर चिपके रहना और अपने परिवार के ही व्यक्तियों को पद पर बिठाना या टिकिट देकर चुनाव लड़वाना बंद नही होगा तब तक कुछ भी संभव नहीं है.







कल्पेश रावल

पत्रकार एवं संपादक 

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